Arhar Ki Kheti Kaise Karen: अरहर एक दलहनी फसल है किसी खेती पूरे देश में की जाती है। दुनिया भर में ऐसी खेती होती है मगर सबसे ज्यादा भारत में इसकी खेती करके पूरे विश्व में निर्यात किया जाता है। इसकी खेती करने से खेतों की उर्वरक शक्ति में बढ़ोतरी हो जाती है।
क्योंकि डालनी पौधे की जड़ में राइजोबियम नमक कीटाणु पाए जाते हैं जो की नाइट्रोजन को इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस भूमि में उर्वरक शक्ति बढ़ जाती है सबसे खास बात है कि और हर में सबसे ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है। और हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है जिसे शारीरिक और मानसिक विकास में प्रोटीन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
अरहर की खेती करने से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है क्योंकि बाजार में इसकी मांग काफी ज्यादा है। घरेलू बाजारों के साथ-साथ विदेशी बाजारों में भी इसकी मांग बढ़ रही है। भारत विश्व में सबसे ज्यादा अरहर का उत्पादन करने वाला देश है। भारत में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, प्रमुख रूप से अरहर उत्पादन करने वाला राज्य है। और सभी लोगों को प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ खाने के लिए अरहर दाल का प्रयोग भोजन में शामिल करते हैं, इसलिए इस दाल का मांग सबसे ज्यादा है।
Arhar Ki Kheti Kaise Karen
सबको पता है कि अरहर का दाल दलों का राजा होता है। क्योंकि बाजार में भी इसकी कीमत काफी भारी भरकम होती है। और खाने में भी सबसे अच्छा टेस्ट मिलता है लोग बहुत ही अच्छे से इसकी दाल का उपयोग करते हैं। इसलिए सभी किसान भाई बेसिक खेती करने से पीछे नहीं हटते। क्योंकि लागत से कई गुना मुनाफा होता है इसलिए सभी किसान भाई इसी खेती बहुत ही अच्छे से करते हैं।
आज के समय में अरहर की खेती दोमट मिट्टी में महत्वपूर्ण रूप से की जाती है। जहां पर खेती करने के बाद किसानों को ज्यादा उत्पादन मिल सके। अगर आप एक बार किसी खेत में दलहन का पौधा बोल देते हैं तो उसके बाद उसे खेत में खाद डालने की जरूरत नहीं पड़ेगा। क्योंकि दुल्हन के पौधे देने से खेत की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी अपने आप हो जाता है।

अरहर की खेती के लिए मिट्टी
वैसे तो अरहर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए आपको अच्छी मिट्टी का चुनाव करना होगा। इसका पीएच मान 7 से 8 के मध्य होनी चाहिए समतल और अच्छी जल निकासी वाली बालू दोमट मिट्टी सबसे उपजाऊ मारा जाता है। अगर आप दलहनी पौधा किसी भी खेत में बोते हैं तो वह खेत उपजाऊ हो जाता है। इसलिए किसी भी मिट्टी में अरहर खेती की जा सकती है।
अरहर की महत्वपूर्ण किस्में
भारत में दलहनी पौधा में आधार सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जिसके उन्नत किस्म इस प्रकार है-
- RVICPH 2671: यह किस एम बुरी अरहर की शंकर किस्म है इसकी फसल लगभग 1 साल 70 से 80 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है। इस किस्म की दाल में प्रोटीन की मात्रा 24.7% होता है और इसकी उपज 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- JKM 189: अरहर की इस किस्म में हरी फली और काली धारी के साथ लाल और भूरा बड़ा दान होता है। इसकी औसत उपज 20 से 25 किलोमीटर प्रति हेक्टेयर है।
- पुसा 9: यह किस 270 दिनों की अवधि में पक कर तैयार हो जाता है। और इसकी औसत उपज 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है इसकी बुवाई जुलाई से सितंबर तक की जाती है।
- पूसा 16: पूसा 16 किस्म में सिर्फ पकड़ने वाली है इसकी अवधि 1 से 20 दिनों की ही होती है। यानी बहुत कम समय में यह पैक कर तैयार हो जाता है। और इस फसल में छोटे आकार का पौधा 95 सेंटीमीटर से 120 सेंटीमीटर लंबा होता है इस किस्म की औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।
- ICPL 87: इसकी ऊंचाई 90 से 100 सेंटीमीटर होती है और इसकी अवधि 140 से 50 दिनों में तैयार हो जाता है। यानी बहुत कम समय में इस किस्म की फसल तैयार हो जाती है इसकी औसत 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- ICPL 151: इस किस्म की अरहर के खेती की अवधि 125 से 135 दोनों किस के बाद पकाने लगती है। इसका दाना बड़ा और हल्के पीले रंग का होता है। इसकी औसत पैदावार 20 किलोमीटर प्रति हेक्टेयर तक होती है।
अरहर की खेती की तैयारी
अरहर की खेती की तैयारी करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हाल से जुताई करनी चाहिए। इसके बाद दो से तीन बार और जुताई देसी हर या कल्टीवेटर से कर देनी चाहिए। खेत की जुताई हो जाने के बाद खेत में नमी रखने के लिए समतल पाटा लगाना अति आवश्यक होगा। इसलिए आप पाटा लगाने से सिंचाई करने के समय पानी और समय दोनों की बचत हो सकती है।
अरहर की बुवाई की उचित समय
अरहर के मुख्य रूप से बुवाई जून से जुलाई महीना में की जाती है। यह मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। अरहर की फसल की अवधि के अनुसार 130 दिनों से लेकर 200 दिनों तक का होता है जो सामान्य माना जाता है।
Arhar Ki Kheti के लिए बीच की मात्रा
अरहर की खेती के लिए कम दिनों में पकने वाली किस्म का बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति एकड़ तक डालना चाहिए। अरहर की खेती के मध्य समय में पकाने वाले किस में की बीच 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक डाल सकते हैं।
उर्वरक का उपयोग
अरहर की बुवाई के लिए खाद्य उर्वरक का उपयोग काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। इसलिए आप 20 किलोग्राम डीएपी 10 किलोग्राम मुरेते एवं पोटाश 5 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर कर सकते हैं। 3 वर्ष में एक बार 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से पैदावार में अच्छी बढ़ोतरी भी होता है। और अरहर के पौधे में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो खाद्य एवं उर्वरक का काम करता है।
अरहर की फसल की सिंचाई
अरहर की खेती में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। कम सिंचाई से ही इसका काम चल जाता है। अगर आप सिंचाई करना चाहते हैं तो एक सिंचाई जब पौधा फूल देने लगे उसे समय कर देनी चाहिए। और दूसरी सिंचाई फलिया आने के पहले कर देनी चाहिए।
अरहर की फसल की कटाई और भंडारा
अरहर की फसल की कटाई तब करेजा पटिया गिरने लग जाए और 80% फलिया गोरे रंग की हो जाए तब आपको फसल की कटाई कर देनी चाहिए। एवं अरहर का बीज जो अच्छी तरह से सुख जाए तभी इसका भंडारण करना चाहिए। नहीं तो बीच खराब हो सकता है इसीलिए पूरा सुखाकर ही भंडारण करें।
किट और रोग नियंत्रण
अरहर की खेती में कई प्रकार के पाली छेड़ना कीटों का आक्रमण होता है। और इससे बचने के लिए कीटनाशक की दवा का छिड़काव करना पड़ता है। इसके नियंत्रण के लिए दो या तीन बार कीटनाशक की दवा का छिड़काव करना होगा पहले छिड़काव इंडोस्कोप 0.5 म प्रति लीटर पानी के साथ मिलकर करें। फल निकालने के अवस्था में इसका छिड़काव कर देनी चाहिए एवं दूसरा छिड़काव मोना प्रोटोपास करना चाहिए। जो 15 दिनों के बाद होता है इसके अलावा और हर में उकठा रोग भी होता है। इसलिए इसरो से छुटकारा पाने के लिए पौधों को खेत से उखाड़ कर फेंक देनी चाहिए।
अरहर की खेती से कितना उत्पादन होगा
अरहर की उत्तम विधि से खेती करते हैं तो 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की प्राप्ति हो सकती है। उसके साथ आपको 50 से 60 क्विंटल लकड़ी की भी प्राप्ति होगी।